पेटीकोट के अन्दर ठकुराइन की लण्ड फनफाना रहा था । पंडिताईन की हिलते चूतड़ों को देखती हुई, पीछे चलते हुए आम के पेड़ों के बीच पहुंच गयी । वहां ज्वाला देवी फ्लेश-लाईट (टार्च) जला कर, ऊपर की ओर देखते हुए बारी-बारी से सभी पेड़ों पर रोशनी डाल रही थी ।
“इस पेड़ पर तो सारे कच्चे आम है…इस पर एक-आध ही पके हुए दिख रहे…।”
“इस तरफ टार्च दिखाओ तो मालकीन इस पेड़ पर …पके हुए आम…।”
“कहाँ है,,,? इस पेड़ पर भी नही है, पके हुए…तु क्या करती थी, यहां पर…?? तुझे तो ये भी नहीं पता, किस पेड़ पर पके हुए आम है…???”
पंडिताईन ने ज्वाला देवी की ओर देखते हुए कहा-
“पता तो है, मगर उस पेड़ से तुम तोड़ने नहीं दोगी…!।”
“क्यों नही तोड़ने दूँगी,,?…तु बता तो सही, मैं खुद तोड़ कर खिलाऊँगी..।” -फिर एक पेड़ के पास रुक गई ।
“हां,,,!! देख, ये पेड़ तो एकदम लदा हुआ है पके आमों से,चल ले, टार्च पकड़ के दिखा, मैं जरा आम तोड़ती हूँ…।”
कहते हुए ज्वाला देवी ने पंडिताईन को टार्च पकड़ा दिया ।
पंडिताईन ने उसे रोकते हुए कहा,-
“क्या करती हैं…?, कहीं गिर गई तो..…? आप रहने दो मैं तोड़ देती हुं…।”
“चल बड़ी आयी…आम तोड़ने वाली, मैं गांव में ही बड़ी हुई हुं…जब मैं छोटी थी तो अपनी सहेलियों में मुझसे
ज्यादा तेज कोई नही था, पेड़ पर चढ़ने में…देख मैं कैसे चढ़ती हुं…।”
“अरे, तब की बात और थी…”
पर पंडिताईन की बाते उसके मुंह में ही रहगई, और ज्वाला देवी ने अपने पेटिकोट को एकदम जाघों के ऊपर कर अपनी कमर में खोस लिया, और पेड़ पर चढ़ना शुरु कर दिया । पंडिताईन ने भी टार्च की रोशनी उसकी तरफ कर दी । जैसे ही ठकुराइन एक पैर उपर के डाल पर रखा उनकी पेटीकोट अपने-आप कमर तक सरक गया और ज्वाला देवी की भारी गांड साफ दिखाई देने लगा ।
थोड़ी ही देर में काफी ऊपर चढ़ गई, और पेर की दो डालो के ऊपर पैर जमा कर खड़ी हो गई, और टार्च की रोशनी में
हाथ बढ़ा कर आम तोड़ने लगी । तभी टार्च फिसल कर पंडिताईन की हाथों से नीचे गिर गयी ।
“ अरे,,,,, क्या करती है तु …? ठीक से टार्च भी नहीं दिखा सकती क्या ?”-
पंडिताईन ने जल्दी से नीचे झुक कर टार्च उठायी और फिर ऊपर की …।
“ ठीक से दिखा ,,, इधर की तरफ …”
टार्च की रोशनी ठकुराइन जहां आम तोड़ रही थी, वहां ले जाने के क्रम में ही रोशनी ज्वाला देवी के पैरो के पास
पड़ी तो पंडिताईन के होश उड़ गये । ज्वाला देवी ने अपने दोनो पैर दो डालो पर टिका के रखे हुए थे । उनकी पेटिकोट दो भागो में बट गया था । और टार्च की रोशनी सीधी उनकी दोनों पैरो के बीच के अन्धेरे को चीरती हुई पेटिकोट के अन्दर के माल को रोशनी से जगमगा दिया । पेटिकोट के अन्दर के नजारे ने मदन की तो आंखो को चौंधिया दिया ।
टार्च की रोशनी में पेटिकोट के अन्दर कैद, चमचमाती मखमली चौड़ी- चकली जांघो के बीच एक मर्द जैसा ढाई
इंच मोटा लण्ड लटका हुआ था । पंडिताईन की तो होश ही उड गया चौघराइन की लंड देख कर । उसने पहली बार किसी औरत के बदन में लंड देख रही थी । पर ये कैसा हो सकता है, ठकुराइन तो बेहद खुबसुरत महिला थीं । तो फिर उनकी शरीर में चुत की वजाय ये मर्दाना लंड कैसे ?
ठकुराइन की ये अनोखी रुप देख कर पंडिताईन का सर चकराने लगा था । उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था… कि महिलाओं की भी लंड होती हैं ……?????
फिर पंडिताईन ने उनकी मखमली जांघों में रोशनी जमाए
रखा । ठकुराइन की लंड अभी पूरा खड़ा नही था ।पेड़ पर चढ़ने की मेहनत ने ठकुराइन की लंड को ढीला कर दिया था, मगर अभी भी काफी लम्बा और मोटा दिख रहा था । रोशनी पूरी ऊपर तक ठकुराइन की काली काली झाँटों को भी दिखा रही थी । टार्च की रोशनी में कन्दली के खम्भे जैसी चिकनी मोटी जाघों के साथ-साथ उनकी लंड और झांटों को देख लगा की उसकी चुत पानी फेंक देगी, उसकी गला सुख गया और हाथ-पैर कांपने लगे ।
तभी ज्वाला देवी की आवाज सुनाई दी,
“ अरे, कहाँ दिखा रहा है ? यहां ऊपर दिखा ना…!! ।”
हकलाते हुए पंडिताईन बोली-
“ हां,,,! हां,,, अभी दिखाती … वो टार्च गिर गयी थी।”
फिर टार्च की रोशनी ठकुराइन के जांघों पर फोकस कर दी । ठकुराइन ने दो आम तोड़ लिये फिर बोली-
“ ले, केच कर तो जरा …”
और नीचे की तरफ फेंके , पंडिताईन ने जल्दी से टार्च को कांख में दबा , दोनो आम बारी-बारी से केच कर लिये और एक तरफ रख कर , फिर से टार्च ऊपर की तरफ दिखाने लगी । और इस बार सीधा उनकी दोनो टांगो के बीच में रोशनी फेंकी । इतनी देर में ज्वाला देवी की टांगे कुछ और फैल गई थी । पेटिकोट अब पुरा ऊपर उठ गया था और
उनकी लंड और बडे-बडे अंडकोष ज्यादा साफ दिख रही थी । नीचे से ठकुराइन की लंड लाल लग रहा था, शायद सुपाड़े पर से चमड़ी हटी हुई थी ।
पंडिताईन की ये भ्रम थी या सच्चाई पर ज्वाला देवी के हिलने पर उसे ऐसा लगा , जैसे उनकी लंड के लाल सुपाडी ने हल्का सा अपना मुंह खोला था ।
नीचे अन्धेरा होने का फायदा उठाते हुए , पंडिताईन ने एक हाथ से अपना चुत की दरार को पेटीकोट के उपर से हल्के से दबाया ।तभी ज्वाला देवी ने उपर से कहा –
“ जरा इधर दिखा …। ”
पंडिताईन ने वैसा ही किया । पर बार-बार वो मौका देख
टार्चकी रोशनी को उनकी टांगो के बीच में फेंक देती थी । कुछ समय बाद ज्वाला देवी बोली-
“ और तो कोई पका आम नहीं दिख रहा,… चल मैं नीचे आ जाती हुं, वैसे भी दो आम तो मिल ही गये…। तु खाली इधर-उधर लाईट दिखा रहा है, ध्यान से मेरे पैरों के पास लाईट दिखा ।”
कहते हुए नीचे उतरने लगी । पंडिताईन को अब पूरा मौका मिल गया, ठीक पेड़ की जड़ के पास नीचे खड़ा हो कर
लाईट दिखाने लगी । नीचे उतरती ठकुराइन के पेटिकोट के अन्दर रोशनी फेंकते हुए , मस्त ठकुराइन माँसल, चिकनी जांघो को अब वो आराम से देख सकती थी । क्योंकि ठकुराइन का पूरा ध्यान तो नीचे उतरने पर था,
हालांकि उनकी लंड और झाँटों का दिखना अब बन्द हो गया था, मगर ठकुराइन का मुंह पेड़ की तरफ होने के कारण पीछे से उसके मोटे-मोटे चूतड़ों दिख रहे थे ।
उतरने में दिक्कत न हो इसीलिए ठकुराइन अपनी पेटीकोट को पुरी समेट कर कमर में खोस लिया था,
जिससे पंडिताईन को उनकी कमर से निचे उभरी हुई भारी चौडी गांड रोशनी में साफ दिखाई दे रहा था । ठकुराइन के
निचे उतरते समय भी अपनी आंखो से उनकी गदराई गोरी चूतड़ों के दरार से उनकी लटकती मूषल लंड और अंडकोष
की थिरक को देख पंडिताईन की चुत में खुजली होने लगा था । एक हाथ से चुत को कस कर दबाते हुए,
पंडिताईन मन ही मन बोली-
“हाय ऐसे ही पेड़ पर चढी रह उफफ्फ्… क्या चूतड़ हैं ? …किसी ने आज तक नहीं रगड़ा होगा एकदम अछूते
चूतड़ों होंगे…। हाय मालकीन चुत ले कर खडी हूँ, जल्दी से नीचे उतर के इस पर अपना लंड पेल दो !”
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