मेरे बाल मेरे चेहरे पर खुल कर बिखर गये थे। अँधेरे में पता ही नहीं चल रहा था कि मैं किस का लंड अपनी चूत के अंदर ले रखी हूँ। शायद उसे भी खबर नहीं होगी। कुछ देर तक इसी तरह उसे ऊपर से धक्के लगाने के बाद मेरी चूत ने पानी चोड़ दिया मगर मेरी चूत की प्यास अभी नहीं बुझी थी। उसने अब मुझे नीचे लिटा दिया और मेरे टाँगों को फैला कर दोनों हाथों से पकड़ लिया। अब वो अपना लंड मेरी चूत से सटा कर धक्का लगाने लगा। फिर से धक्के शुरू हुए। काफी देर तक इसी तरह करने के बाद मुझे उठाकर अपनी गोद में पैर फैला कर बिठा लिया और मैं उसकी गोद में बैठ कर कमर उचकाने लगी। उसने मेरे निप्पलों को मुँह में भर लिया और उन्हें चूसने लगा। मैंने अपने हाथों से उसके मुँह को अपने सीने पर दबा दिया। वो मेरी चूंचियों को मुँह में भर कर चूसने लगा। मेरे निप्पलों को दाँतों से दबा रहा था। कुछ देर तक इस तरह करने के बाद मुझे वापस बिस्तर पर लिटा कर मेरे टाँगों को अपने कँधे पर रख लिया और फिर जोर जोर से चोदने लगा। अब वो झड़ने के करीब था। मैं उसकी उत्तेजना को समझ रही थी। वो अब मेरे चूंची के साथ बहुत सख्ती से पेश आ रहा था। उसकी अँगुलियाँ मेरी नाज़ुक चूंचियों को बुरी तरह मसल रही थी। दर्द के कारण कईं बार मुँह से चीख निकलते निकलते रह गयी। मैंने अपने निचले होंठ को दाँतों में दबा लिया। उसने एक जोर का धक्का लगाया और उसके लंड से गरम गरम फ़ुहार मेरी चूत के अंदर पड़ने लगी। मैंने उसे खींच लिया और उसके होंठों और चेहरे पर कईं चुंबन दिये। उसी के साथ मैं भी तीसरी बार झड़ गयी। मैंने उत्तेजना में अपने लम्बे नाखून उसकी नंगी पीठ पर गड़ा दिये। वो थक कर मेरे ऊपर ही लेट गया। जब उसका लंड ढीला पड़ गया तो वो मेरे सीने से उतर कर मुझसे लिपट कर सो गया। मैं भी तीन बार स्खलित होके उसके होंठों से अपने होंठ लगाये हुए सो गयी।
मैं सुबह पाँच बजे उठ जाती हूँ। आज जब उठी तो कमरे में अँधेरा था। मैं अपने बगल वाले से चिपकी हुई थी। दूसरी तरफ वाला भी अपनी एक टाँग मेरे ऊपर चढ़ा रखा था। मैंने अपने को उन दोनों से छुड़ाया और धीरे-धीरे उनके नीचे से अपने कपड़ों को खींच और फिर अँधेरे में ही उन्हें पहन कर कमरे से बाहर निकलने लगी। तभी खयाल आया कि एक बार देखूँ तो सही कि कौन थे रात को मेरे साथ। मैंने लाईट जलायी तो उन्हें देखते ही चौंक गयी। वहाँ एक तरफ तो नैनीताल वाले फ़ुफ़ा-ससुर सोये हुए थे और मुझे रात भर चोदने वाला और कोई नहीं मेरे अपने ससुर जी थे यानी रिटा और राघव के पिताजी। मैं तुरंत लाईट बँद करके वहाँ से भाग गयी।
मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। मैं ये सोच कर अपने दिल को तसल्ली दे रही थी कि शायद उन्हें पता नहीं चला है कि रात को उन्होंने किसके साथ चुदाई की है। मैंने एक सलवार कुर्ता पहन रखा था, जिसका गला काफी खुला हुआ था। मैं सुबह अपने ससुर को चाय देने के लिये जब झुकी तो मेरा गला और ज्यादा खुल गया। उठते हुए मेरी नज़र उनसे मिली वो मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे। मैंने अपनी चूंचियों की तरफ देखा। खुले गले से लाल-लाल दाँतों से बने निशान उनकी आँखों के सामने रात की कहानी का ब्योरा दे रहे थे। मैं शर्मा कर अपनी नज़र झुका कर वहाँ से भाग गयी। उस दिन शाम को उन्होंने अकेले में मुझे पकड़ लिया। मैं तो एक दम घबड़ा गयी थी। उन्होंने मेरी चूंचियों को मसल कर कहा “अब रोज हमारे साथ ही सोया कर। तेरे नैनीताल वाले ससुर जी भी यही कह रहे थे।” “धत्त” कह कर मैं अपने आप को छुड़ा कर वहाँ से भाग गयी लेकिन हर दिन मैं वहीं सोयी। उन दोनों बुढ्ढों के बीच। दोनों के साथ खूब खेली कुछ दिनों तक। शादी वाले दिन बारात के साथ सुरेश आया था। मैं उसे देख कर शर्मा गयी। उससे नज़र बचा कर थोड़ा अलग हो गयी। मगर उसकी निगाहें तो मुझे ही ढूँढ रही थी। शादी घर से कुछ दूर हो रही थी। एक बार मैं किसी काम के लिये शादी के मंडप से घर आ रही थी। गाँव में जैसा होता है… रास्ते में अँधेरा था। अचानक भूत की तरह सुरेश सामने आया।
“प्रतिमा” उसने आवाज लगायी। मैं रुक गयी। “क्या बात है मुझे बहुत जल्दी भूल गयी लगता है”
“कौन है तू… मेरा रास्ता छोड़ नहीं तो अभी आवाज लगाती हूँ… तेरी ऐसी हजामत होगी कि खुद को आईने में नहीं पहचान पायेगा” मैंने नासमझ बन कर कहा।
“नो बेबी तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगी…” उसने कड़कते हुए कहा, “मेरे पास तेरी सी.डी अभी भी है… बोल चला दूँ क्या तेरे ससुराल वालों के सामने… कहीं भी मुँह नहीं दिख पायेगी।”
यह सुनते ही मैं सकपका गयी। “क्या चाहते हो तुम? देखो मैं वैसी लड़की नहीं हूँ… एक अच्छे घर की बहू हूँ… तुम मुझे जाने दो।” मैंने उससे कहा।
“तो हम भी कौनस तुझे कुछ कहने वाले हैं। इतने दिनों बाद मिली हो… बस एक बार हमारे ग्रुप का मन रख लो… फिर तुम अपने घर हम अपने घर।” उसने मुझे मेरा हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा।
“देखो मैं अगर लेट हो गयी तो लोग मुझे ढूँढते हुए यहाँ आ जायेंगे… छोड़ो मुझे।”
“ठीक है अभी तो छोड़ देते हैं लेकिन तुझे रात को आना पड़ेगा… नहीं तो उस फ़िल्म की कॉपियाँ तेरी ससुराल में सबको फ़्री में बँटवा दुँगा” कहकर उसने मेरा हाथ छोड़ दिया। मैं छूटते ही भागी तो उसने पीछे से आवाज लगायी “हमें इशारा कर देना कि कहाँ चलना है… जगह ढूँढना तेरा काम है”
मैं भाग गयी वहाँ से लेकिन एक टेंशन तो घुस ही गयी दिमाग में। समझ में नहीं आ रहा था कि मैं कैसे मकड़ी के जाल में उलझती जा रही हूँ। इसका कोई अँत ही नहीं दिख रहा था। लेकिन इतना तो मालूम था कि वो झूठ नहीं बोल रहा था। केशव के साथ होटल में हुई पहली मुलाकत में उसने मूवी कैमरे से सब कुछ खींचा था। अब अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी तो वो मुझे बदनाम कर देगा। इसलिये मैंने उससे मिल ही लेने का विचार किया। सुबह तीन बजे फेरे थे, इसलिये मैंने सुरेश को इशारा किया। वो मेरे पीछे हो लिया। मैं अपनी सासू माँ को कुछ देर घर से हो कर आने को कह कर वहाँ से निकल गयी। रात के ग्यारह बज रहे थे और ज्यादा तर लोग सो चुके थे। जो मंडप में थे वो ही सिर्फ़ जागे हुए थे। इसलिये पकड़े जाने का कोई सवाल ही नहीं था। सुरेश के साथ तीन और आदमी थे। मैं उन्हें घर ले गयी। छत पर अँधेरा था और मैं उन्हें वहाँ ले गयी।
“देखो जो करना है जल्दी करो… अभी शादी का माहौल है… कभी भी कोई आ सकता है” मैंने कहा।
चारों ने मुझे पकड़ लिया और मेरे बदन से लिपट गये। मेरे कपड़ों पर हाथ लगते ही मैंने कहा, “इन्हें मत उतारो… मैं साड़ी उठा देती हूँ … तुम्हें जो करना है कर लो। मेक-अप बिगड़ गया तो कोई भी समझ जायेगा”
“तू यहाँ चुदवाने आयी है या हम पर एहसान कर रही है… साली रंडी कितने ही मर्दों से चुदवा चुकी है… अब सती-सावित्री बन रही है। उतार साली अपने कपड़े” उसने दहाड़ कर कहा। मैंने भी देखा कि चारों मानने वाले हैं नहीं, इसलिये मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू किये। साड़ी उतार कर मैंने उनसे फिर मिन्नतें की “प्लीज़ ऐसे ही जो करना है कर लो मेरे सारे कपड़े मत उतारो” मैंने सुरेश को कहा।
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