मैंने फिर से परदे के छेद से अंदर झांका, मम्मी की लंड वीर्य से तरा था, मम्मी एक तौलिए से अपनी लंड को पोछ रही थी, लंड के सुपाडा को पोछने के बाद उसे अन्दर सरका दी फिर भी सुपाडा आधा खुला ही रह गया । लंड साफ करने के बाद पूरे बदन के पसीना पोछने लगी ।
मैं अब तक मम्मी की लंड ही देख रहा था । मम्मी को क्या नाम दुँ, औरत या मर्द ? उनकी पूरी शरीर तो है एक औरत का जिस पर बुर नहीं थी । उनकी स्त्री शरीर पर 6 इंच का मोटा और लम्बा लंड था साथ में बडा सा अंडकोष जो आम मर्दों के लंड और अंडकोष के साईज से बडे थे । मम्मी अब एक साफ पेटीकोट निकाल कर पहनने लगी थी ।
ये देख कर मैं वहां से खिसक गया । सोचा घर जाउँ या नहीँ, फिर सोचा बाद में जाउंगा । यही सोचकर बाजार चला गया । पागलों की तरह इधर उधर घुमने लगा । बार बार मम्मी की चेहरा सामने आ जाता था । क्या हो गया ……! मम्मी को क्या हो गया, पहले तो व ऐसी न थी, फिर ये लंड ! क्या मम्मी विदेशोँ की नौकरी से इतनी उग्र आधुनिक हो गई कि उसे औरोतों की जिंदगी बोझ लगी ? जिससे मम्मी औरोतों की शरीर में लंड को लेकर खूश है ! क्या औरोतों की भी मर्द जैसा लंड होती है ? उनकी लंड से विर्य भी निकलती है ? ये मैंने अपने घर से जाना ।
मम्मी के साथ रहुं ? या छोड के चला जाउँ ! बार बार मन में ये खयाल आ रहा था । मैं गुस्से के साथ साथ मम्मी की लंड की खयाल आते ही उत्तेजित भी हो रहा था । कब अंधेरा हो गया पता नहीँ चला शायद मम्मी परेशान हो रही होगी । आखिर जैसी भी हो व मेरी मम्मी है । व कैसी जिन्दगी जीना चाहती हैं, व उनकी निजी जिन्दगी है, मैंने तय किया कि मैँ अब मम्मी की जिन्दगी में दखल नहीं दुंगा ।
घर पहुंच कर देखा मम्मी किचन में खाना बना रही थी । मम्मी एक लाल रंग की साडी और काले रंग की ब्लाऊज पहन रखी थी । साडी की पल्लु को मोड के कमर में लटका दी थी जिससे उनकी चौडी चुतड की उभार बडी सेक्सी लग रही थी । कितनी मासूम लग रही थी मम्मी, पर साडी के अंदर गांड के साथ उनकी 6 इंच लम्बा और मोटा लंड की कल्पना करते ही मेरा लंड फिर से खडा हो गया ।
मुझे देखते ही मम्मी सवाल करना शुरु कर दी –
“कहां था अब तक ? कितनी परेशान हो गई थी मैं ।”
मैंने कोई जवाब नहीँ दिया ।
“मैं पुछ रही हुं अब तक कहाँ था तु ?” मम्मी दुबारा पुछी ।
फिर भी मैंने कोई जवाब नहीँ दिया ।
“मैं तुमसे कुछ रही हुँ । सुनाई देता है कि नहीं ?” उन्होंने डांटते हुए बोली ।
” दोस्तों के साथ बाहर गया था ।” मैंने जवाब दिया । मम्मी को कहाँ पता था की उनका बेटा आज दोपहर को उनकी ऐयाशी जिन्दगी की रहस्य जान चुका है ।
“कितनी बार तुझे मना किया है बाहर मत जा, अभी तु नया है इस शहर में ।” मम्मी बोली ।
मैंने कुछ नहीं बोला और अपने कमरे में चला गया । मम्मी हैरानी से मुझे देखती रही और मन ही मन बोल उठी “आखिर इसे हो क्या गया ।”
उन्हें क्या पता की मेरे अंदर क्या चल रहा है ।
दुसरे दिन सुबह उठते उठते 8.00 बज चुके थे । मम्मी आँफिस के लिए तैयार हो रही थी । कल की यादें तजा ही गई, कैसे मैं जल्दी वापस आने से मम्मी की गहरी राज का पता चला I मम्मी है तो एक औरत मगर उसकी बुर नहीं थी I मर्द जैसा ही एक बड़ा सा लंड थी मम्मी की …. तभी फोन रिंग हुई और मैंने उठकर रिसीव किया तो मुझे मम्मी को मनोज नाम के किसी आदमी से बातेँ करते सुनाई दी । हमारे एक ही लाँड-लाईन पर दोनों कमरे की फोन संजोग था तो मुझे दोनों की बातें सुनाई दी । मम्मी धिमी आवाज में उस आदमी से बातें करते सुन मैंने ध्यान से दोनों की बातें सुनने लगा ।
मम्मी- “देखो मनोज अब मेरा बेटा मेरे साथ है । अब
मैं नहीं चाहती कि पहले जैसा हम सब करें ।”
मनोज-“पर मैडम आपका बेटा तो दिन भर काँलेज में होगा न।”
मम्मी- “नहीं !, उसे शक हो जाएगा ।”
मनोज- “तो आप यहाँ आ जाईए । मैँने अपने दूर के रिश्तेदार को मना लिया है । बेचारी के पति ने उसे छोड दी है । उसकी उम्र थोडी ज्यादा है, लेकिन है बडी मस्तानी ।”
मम्मी- “क्या कहा तुमने ? वंदोबस्त हो गया ? वाह! तुमने मुझे खुश कर दिया । तुम्हारी बातें सुनते ही मेरी लंड में तनाव आना शुरु हो गया । ठिक है, मैं आज शाम को आँफिस के बाद जाउंगी ।”
मैंने मम्मी की बातें सुनकर सोच में पड गया । मम्मी शाम को कहाँ जाएगी, वहां जाकर क्या करेगी जो मेरे यहाँ रहने से नहीं कर पा रही है ।
इतने में मम्मी आवाज लगाई –
“बेटा खाना लगा दिया है खा लेना । मुझे आँफिस के लिए देर हो रही है, हाँ और शाम को मेरा मीटिंग है, मुझे लौटने में देर हो जाएगी ।”
“हाँ मम्मी ।” मैंने जवाब दिया ।
मम्मी के जाने के बाद मैंने तैयार होकर काँलेज के लिए निकल पडा । पढाई में बिल्कुल मन नहीं लगा । बार बार मम्मी की बातें याद कर रहा था । आखिर मम्मी मेरे यहाँ आने से पहले मनोज के साथ क्या करती थी जो मेरे आ जाने से नहीं करना चाहती । बाहर जाकर करना चाहती
है । फिर मैंने फैसला कर लिया कि आज मम्मी की पिछा करुंगा और सारा सच्चाई जान के रहुंगा ।
मैं 4.00 बजते ही एक दोस्त की बाईक लेकर सिधे मम्मी की ऑफिस पहुंच गया । अंदर उसकी गाडी खडी थी । मम्मी अब तक ऑफिस में ही थी । में बाहर एक गाडी के पिछे अपने आप को छुपाए रखा और इंतजार करने लगा कब मम्मी बाहर निकलेगी । करीब 6.00 बजे मम्मी की गाडी बाहर आते देख में सावधान हो गया, जैसे ही मम्मी की गाडी आगे निकल गई में उसका पिछा करना शुरु कर दिया ।
मैंने अपना चेहरा एक स्कार्फ से बांध दिया ताकि मम्मी मुझे पहचान न सके । मम्मी गाडी तेजी से चला रही थी । पांच मिल दूर जाने के बाद मम्मी एक बंगले के सामने रुकी और हर्न बजाने लगी । हर्न सुनते ही एक आदमी आकर गेट खोल दिया और मम्मी गाडी अंदर की । उस आदमी ने गेट बंद कर दिया और गाडी से उतरती मम्मी की होंठों को चुसने लगा और बोला –
“आप ने आने में बहुत टाईम लगा दी ।”
“क्या करुं मनोज , अचानक काम आ गया, पर माँ जी हैं या चली गई ?” मम्मी ने मनोज से पुछी ।
“माँ जी ! कौन संगीता देवी ? अरे व तो आज रात भर यहाँ रुकने वाली हैं । आपके बारे में सुन कर उनकी उत्सुकता बढ गई है ” ।
“क्या ! ” मम्मी चौंक पडी और मुस्कराते हुए मनोज की बाहें हाथ में लिए अंदर जाने लगी । अंधेरा छा गया था, आधे घंटे के बाद मैंने बाईक को एक झाडी में छिपा दी और गेट चढ़ कर अंदर दाखिल हो गया । फिर उस कमरे की और चल दिया जहाँ से उन लोगों की आवाजें आ रही थी । मेरा पूरा बदन उत्तेजना के मारे कांप रहा था, दरवाजा अंदर से बंद था । मैंने पिछे की और चला गया , खीडकी आधी खुली हुई थी । मैंने परदे को अपने पेन से थोडा सरकाया और अंदर झाँकने की कोशिश की तो मुझे अंदर का सीन साफ दिखाई दी ।
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