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read sex story mera beta ab bada ho gaya hai


This is a hindi sexy kahani about a unsatisfied wife whose husband cannot keep her happy whilst her son is getting ‘bigger’ everyday. It would be huge step in her life if dares to think insect. Read the following hindi sex stories to feel her.. कविता अपने बिस्तर पर बैचेनी से करवटें ले रही थी. उसे पिछले दो घण्टे से नींद नही आ रही थी. इस समय रात के दो बज रहे थे. उसका पति हमेशा की तरह खर्राटें ले रहा था. लेकिन उसे नींद न आने की कोई और ही वजह थी. अपने पति के खराटें के साथ सोने की तो उसे आदत पड़ चुकी थी. आखिरकार वो इन्हे पिछले 18 सालों से सुन रही थी. उसे तो थोड़ी देर पहले दूरदर्शन पर देखी एक फिल्म ने बैचेन कर रखा था. यह शुक्रवार रात को दिखायी जाने वाली व्यस्क फिल्म थी. फिल्म की तस्वीरें बार-बार उसके दिमाग में आ रहीं थी. उसकी जिन्द्गगी भी फिल्म की नायिका से बहुत मिलती थी. उसे फिल्म में सबकुछ तो नही समझ में आया क्योंकि फिल्म अंग्रेजी में थी और उसे अंग्रेजी के कुछ शब्द ही आते थे. फिर भी वो फिल्म का मतलब तो समझ ही गयी थी. फिल्म कि नयिका का पति भी उसके पति की तरह अपना पुरूषत्व खो चुका था. पहले वो औरत 5 सालों तक बिना सम्भोग के रहती है फिर टूट जाती है और विवाहेत्तर सम्बन्ध बना लेती है. पिछले दो घंटे से वो अपनी जिन्दगी के बारे में सोच रही थी. उसके पति अशोक 6 साल पहले अपना पुरूषत्व खो चुका था. बिना सम्भोग के रहते हुये उसे अब 6 साल हो गये थे. इन 6 सालों से जैसे-तैसे वो सहन कर रही थी पर आज की रात यह सब असहनीय हो रहा था. उसे लगा कि क्या वो जिन्दगी में फिर से कभी सम्भोग नही कर पायेगी. कभी- कभी वो विवाहेत्तर सम्बन्धों के बारे में सोचती थी. पर उसे डर लगता था कि अगर किसी को पता चल गया तो? वो ये सब खतरे मोल नही लेना चाहती थी. पर सच यही था कि आज उसे एक पुरूष की जरूरत थी क्योंकि उसका अपना पति नामर्द था. वो दिखने में बुरी नही थी. वास्तव में इस समय बिस्तर पर वो काफी आकर्षक लग रही थी. वो साड़ी में थी. प्रायः बिस्तर पर जाने से पहले वो गाउन बदल लेती थी पर आज उसका मन ही नही किया. उसका एक सुन्दर चेहरा था जो कि उदासी कि वजह से थोड़ा दयनीय लग रहा था. उसकी त्वचा का रंग एक आम सांवली भारतीय औरत जैसा था. बाल लम्बे थे. थोड़ी मोटापा पूरे शरीर पर चढ़ गया था. इससे उसका आकर्षण और भी बढ़ गया था. उसकी स्तन बड़े और अभी भी सुडौल थे जबकी अब वो 40 साल की हो रही थी और दो लड़कों की मॉ थी. उसका बड़ा बेटा करण 19 साल का था और छोटा अजय 18 का. उसे थोड़ी प्यास लग रही थी. इसलिये वो उठी और रसोई की ओर चल दी. वो रसोई में घुसने ही वाली थी तभी उसने अचानक देखा कि करण के कमरे से धीमी रोशनी आ रही थी. वो चक्कर में पड़ गयी क्योंकि करण कभी भी कोई लाईट जला कर नही सोता था. इसलिये वो समझ गयी कि करण जग रहा था. पर उसे आश्चर्य हुआ कि इतनी देर रात तक करण क्यों जगा हुआ है? वो उसके कमरे की ओर चल पड़ी. दरवाजा थोड़ा सा खुला था. उसने दरवाजा खोल दिया. जो कुछ भी उसने देखा , उसे देख कर वो हतप्रभ रह गयी. करण बिस्तर पर बैठा था. उसकी पैंट और अन्डी घुटने तक उतरे हुये थे. एक हाथ से वो एक किताब पकड़े हुये था. उसके दूसरे हाथ में उसका कड़ा लिंग था. करण भी पूरी तरह हतप्रभ रह गया. कुछ समय तक दोनो को ही समझ नही आया कि क्या करें? फिर करण ने अचानक बिस्तर पर पड़े कम्बल से अपने आप को ढक लिया. वो बहुत ज्यादा शर्म का अनुभव कर रहा था. उसने अपने आप को दरवाजा बन्द न करने के लिये कोसा. कविता को भी शर्म आ गयी. वैसे इसमें उसकी कोई गलती नही थी. आखिर वो तो कुछ गलत करते हुये नहीं पकड़ी गयी है. पर वो शर्म का अहसास जा ही नहीं रहा था. उसे लगा कि क्या उसे करण को कुछ कहना चाहिये, पर क्या? इस पर उसे कुछ नही सूझा. वो अपने कमरे में वापस चली गयी. जैसे ही वो अपने बिस्तर पर लेटी , उसे अचानक अहसास हुआ कि उसकी योनि में गीलापन आ गया है. उसके मन में अपराधबोध जाग गया और यह भी पता चल गया कि उसे शर्म क्यों आ रही थी. चूंकि उसके शरीर में अपने ही बेटे की नग्नता को लेकर उत्तेजना दौड़ गयी थी इसलिये दिमाग ने उसे शर्म का अहसास करा दिया था.
अचानक ही , पैंट उतारे हुये बेटे की छवि उसके दिमाग में आ गयी और उसे पूरे शरीर में गुदगुदाहट भरी सनसनी का अनुभव होने लगा. इस गन्दगी को दिमाग से निकालने के लिये वो कुछ और सोचने लगी पर वो छवियाँ घूम- घूम कर उसके दिमाग में आने लगी. गुदगुदाहट भरी सनसनी और तेज हो गयी तथा उसे अब ये मानना ही पड़ा कि यह सब सोचना उसे अच्छा लग रहा था. उसने अपनी उत्तेजना दबाने की कोशिश की तो वो और तेज हो गयी. थोड़े समय बाद उसने यह संघर्ष छोड़ दिया. वो अपने मन में अपने की बेटे के सख्त अंग की तस्वीर याद करने लगी. उसने उसके आकार के बारे में सोचा. वो उसके आकार से दंग रह गयी. आखिरकार, करण 11वीं कक्षा में पढ़ने वाला एक बच्चा ही तो था. तो भी उसका आकार कविता को अपनी हथेली से बड़ा लग रहा था. जब ये सब उधेड़बुन उसके दिमाग में चल रही थी, तभी अचानक उसके ख्याल आया कि अगर वो चाहे तो उसका बेटा उसकी आवश्यकतायें पूरी कर सकता है. जिस चीज की उसे इस समय सबसे ज्यादा जरूरत है, वह उसे अपने बेटे से मिल सकती है. इस खयाल ने उसे और भी जयादा उत्तेजित कर दिया. वह जानती थी कि यह पाप है पर इस समय उसे यह सब इतना अच्छा लग रहा था कि उसने पाप-पुण्य के बारे में सोचना छोड़ दिया. उसे लगा कि जब यह ख्याल ही उसे इतना अच्छा लग रहा है तो वास्तविकता में कैसा लगेगा. वो लगभग आधे घण्टे तक यहीं सब सोचती रही. फिर अचानक ही उसकी इच्छायें नियंत्रण से बाहर होने लगी. वो बिस्तर से उठी और बाहर चली गयी. उसके मन के किसी कोने में यह ख्याल भी आ रहा था “कविता , तू पागल तो नही हो गयी! क्या करने जा रही है तू! वो तेरा अपना बेटा है!!”. लेकिन वो इतनी ज्यादा उत्तेजित थी और 6 साल की अतृप्त कामोत्तेजना इतनी तीव्र हो चुकी थी कि उसने आत्मा की आवाज को अनसुना कर दिया. करण के कमरे की तरफ बढ़ते समय उसके मन में कई आशंकायें थी. क्या करण को वो आकर्षक लगेगी? क्या वो इसके लिये तैयार होगा? क्या इस विचार से वो घृणा करेगा? लेकिन अब उसे इस सब की कोई चिंता नही थी. वो अपनी जरूरतों के चलतें पागल सी हो चुकी थी. करण ने अब तक दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया था. उसने धीरे से खटखटाया. 2-3 बार खटखटाने पर दरवाजा खुला. कमरे में अंधेरा था पर धीमी रोशनी में वो करण को देख सकती थी जो उसे इस समय आया देख उलझन में पड़ा हुआ था. वो कमरे में घुस गयी और बल्ब जलाकर पीछे से कमरा बन्द कर लिया.

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