विशाल अब बिंदास उस औरत को मसल रहा था। उस औरत की नाभि में अँगुली डालते हुए वो बोला, “मोहल्ला तो अच्छा है लेकिन लोग हरामी हैं। ज़रा संभल केजाना, बहुत गुंडे रहते हैं वहाँ, खूब छेड़ते हैं बेटियों और औरतों को… अपने रिक्शा से ही जाना ठीक था।” हाथ अब उसके बूब्स के नीचे तक लाके और १-२ बार उसकी गर्दन हल्के से चूमते हुए विशाल आगे बोला, “भाभी तुम आरम से खड़ी रहो… पीछे भीड़ बढ़ भी गयी तो तुमको तकलीफ नहीं होने दूँगा। तुम्हारा नाम क्या है भाभी, मैं विशाल हूँ।”
शीला के पास अब आगे जाने की जगह नहीं थी इसलिये वो अब विशाल की हरकतों का मज़ा लते हुए कोई विरोध नहीं कर रही थी। पर वो एक बात का ख्याल रख रही थी कि कोई ये देखे नहीं। इसलिये जब विशाल ने उसकी नाभि में उँगली डाली तो उसने सहारे का हाथ निकाल के अपना पल्लू पूरा सीने पे ओढ़ते हुए कहा, “ओह थैंक यू। मेरा नाम शीला खन्ना है। आदर्श नगर जाने का कोई दूसरा रास्ता है क्या? आप मुझे पहुँचायेंगे वहाँ? आप साथ रहेंगे तो वो गुंडे मुझे तंग भी नहीं करेंगे।” इशारे से शीला विशाल को अपने साथ आने के लिये बोल रही थी… ये विशाल समझ गया और शीला के पल्लू ओढ़ने से ये भी समझ गया कि ये औरत मस्ती चाहती है। वो समझा कि ये साली शीला बेगम को मज़ा आ रहा है, कुछ बोल ही नहीं रही है, देखें कब तक विरोध नहीं करती। विशाल ने पल्लू के नीचे से अपना हाथ शीला के मम्मों पे रखते हुए कहा, “दूसरा रास्ता बड़ा दूर का है, तुम चाहो तो मैं छोड़ूंगा तुमको आदर्श नगर, मैं मर्द हूँ, मेरे साथ शिवाजी मोहल्ले से आओगी तो कोई नहीं छेड़ेगा तुमको। तेरे लिये इतना तो ज़रूर करूँगा मैं शीला।” इस भीड़ में अपने मम्मों पे हाथ पाके शीला ज़रा घबड़ा गयी और सिर पीछे करके दबे होंठों से विशाल से बोली, “शुक्रिया विशाल… पर तेरा इरादा क्या है? भीड़ का इतना भी फायदा लेने का… ऐसे? मैं कुछ बोलती नहीं… इसलिये ये मत समझो कि मुझे कुछ पता नहीं है, पहले पीछे से सट गये मुझसे, फिर पेट रगड़ा और अब सीने तक पहुँच गये। इरादा क्या है बता तो सही?”
विशाल ने मुस्कुराते हुए कहा, “ऐसा ही कुछ समझो शीला, अब तुम लग रही हो इतनी मस्त कि रहा नहीं गया… पहले दिल में कुछ नहीं था पर छूने के बाद अब सब करने का इरादा है, अब तक पिछवाड़ा और पेट सहलाते हुए हाथ अब सीने तक पहुँचा है पर अभी नीचे जाना बाकी है, बोल तेरा इरादा क्या है? तू भी तो मज़ा ले रही है, बोल तू क्या चाहती है?” विशाल का हाथ अब शीला के ब्लाऊज़ के हुक पे आ गया। शीला समझी कि विशाल ब्लाऊज़ खोलना चाहता है, इसलिये उसने झट से मुड़ करविशाल का हाथ वहाँ से खिसका दिया पर ऐसा करने से विशाल का हाथ उसके पूरे कड़क मम्मों को छू गया। विशाल को देखते हुए उसने कहा, “हुम्म छोड़ो उसे, जहाँ जितना करना है उतना ही करना। तुम लोगों कि यही तकलीफ है, थोड़ी ढील दी कि पूरा हाथ पकड़ लेते हो। ये लो मेरा स्टैंड आया। तुम चलते हो क्या मेरे साथ… मुझे आदर्श नगर छोड़ने विशाल?” शीला ने आखिरी शब्द आँख मारते हुए कहे। विशाल शीला के हाथ को पकड़ के बोला, “अब तेरी जैसी गरम माल मिले तो रहा नहीं जाता, इसलिये तेरा ब्लाऊज़ खोलने लगा था। तेरे साथ आऊँगा शीला लेकिन मेरे वक्त की क्या कीमत देगी तू?” विशाल ने शीला का हाथ कुछ ऐसे पकड़ा कि वो हाथ उसके लंड तो छू गया।
लंड को छूने से शीला ज़रा चमकी। वो अब चाहने लगी थी कि इस मर्द के साथ थोड़ा वक्त बिताऊँ। वो भी गरम हो गयी थी। मुस्कुरा कर वो बोली, “अरे पहले बस से उतर तो सही, मुझे ठीक से पहुँचाया तो अच्छी कीमत दूँगी तेरे वक्त की। देख बस रुकेगी अब… मैं उतर रही हूँ… तुझे कुछ चाहिये इससे ज्यादा तो तू भी उतर नीचे मेरे साथ।” शीला का स्टॉप आया और वो झट से आगे जाके बस से उतरने लगी। शीला का जवाब सुन के विशाल खुश हो कर उसके पीछे उतरा और ज़रा आगे तक दोनों साथ-साथ चलने लगे।
विशाल शीला को लेके चलने लगा। शीला ने जानबूझ के अपना पल्लू ऐसे रखा जिससे विशाल को बगल से उसके मम्मों का तगड़ा नज़ारा दिखे और उसके मम्मों के बीच की गली साफ़ दिखायी दे। आगे काफी सुनसान गली में पूरा अंधेरा था। विशाल शीला की कमर में हाथ डालके कमर मसलते हुए बोला, “आदर्श नगर में इतनी रात क्या काम है तेरा? किसको मिलने जा रही है तू इतनी रात शीला।” घबड़ाते हुए शीला विशाल का हाथ कमर से हटाते हुए बोली, “विशाल हाथ हटा कमर से, पता नहीं चलता यहाँ रासते में कितने लोग आते जाते हैं। मैं आदर्श नगर अपनी सहेली के घर जा रही हूँ।”
विशाल ने हाथ फिर शीला की कमर में डाल के उसे अपने से सटते हुए कहा, “शीला जैसा अच्छा तेरा नाम है वैसा अच्छा तेरा रूप है। सुन शीला इस अंधेरे में किसी को कुछ नहीं दिखता, वैसे भी इस वक्त कोई भी आता जाता नहीं यहाँ से… इसलिये तो डरना नहीं बिल्कुल।” ये कहते हुए विशाल अपने दूसरे हाथ को शीला के नंगे पेट पे रखते हुए बोला, “इस वक्त सहेली के घर क्या काम निकाला तूने?”
किसी के देखने के डर से शीला जल्दी-जल्दी विशाल के आगे चलते हुए सड़क से ज़रा उतर के सुनसान जगह में एक पेड़ के पीछे जाके खड़ी हो गयी। तेज़ चलने से उसकी साँसें तेज़ हो गयी थीं जिससे उसका सीना ऊपर नीचे हो रहा था और पल्लू तकरीबन पूरा-पूरा ढल गया था। जैसे ही विशाल उसके सामने आया तो वो बोली, “उफ्फ ओहह, तुम क्या कर रहे थे सड़क पे ऐसे? कोई देखेगा तो क्या सोचेगा? आज मेरी सहेली ने मुझे उसके नये घर बुलाया था, इसलिये मैं उसके घर जा रही हूँ।” विशाल शीला के सामने खड़ा हो कर शीला का बिना पल्लू का उछलता हुआ सीना देखते हुए एक हाथ से ब्लाऊज़ पर से मम्मे मसलते हुए और दूसरे हाथ से उसका पेट सहलाता हुआ बोला, “यहाँ कौन देखने आता है कि कौन मर्द कौनसी औरत के साथ क्या कर रहा है? अब वैसे भी कोई हमें देखे तो क्या होगा? वो भी वही करेगा जो मैं कर रहा हूँ तेरे साथ, है ना? या तो ये सोचेगा कि हम मियाँ बीवी हैं और घर में मस्ती करने को नहीं मिलती… इसलिये यहाँ आये हैं जवानी का मज़ा लने।” शीला अब कोई भी ऐतराज़ किये बिना विशाल को अपने जिस्म को मसलने देते हुए बोली, “हाय रब्बा कितना बेशरम है तू, बाप रे कैसी गंदी बात करता है? मैं उम्र में तुझसे पंद्रह-बीस साल बड़ी हूँ। वैसे भीहम मियाँ-बीवी तो बच्चों के सोने के बाद ही करते हैं ये सब… अगर बहुत रात हो जाये तो खेलते भी नहीं ये खेल कईं दिनों तक।”
शीला का ढला पल्लू किनारे हटा के विशाल झुकके उसके मम्मों के बीच में मुँह से मसलते और ब्लाऊज़ से मम्मों को हल्के से काटते हुए बोला, “अब तेरी जैसी गरम औरत इतनी बिंदास होगी तो शर्म क्यों जान? बस में भी कितनी मस्ती से मसलवा रही थी जान… वैसे रात को देर हो जाये तो मस्ती नहीं करता तेरा पति तो तुझे बुरा नहीं लगता शीला?” जब विशाल झुकके उसके मम्मों को चूमने लगा तो शीला अपने सीने को और ऊँचा उठा के उसके मुँह पे दबाते हुए बोली, “उम्म्म्म्म मैं बिंदास लगी तुझे… वो कैसे ये तो पता नहीं… बस में ऐतराज़ करती तो मेरी ही बे-इज़्ज़ती होती ना?”
शीला की चूचियाँ जीभ से चाटते हुए विशाल शीला की साड़ी पेटिकोट से निकालने लगा। शीला का ज्यादा से ज्यादा क्लीवेज चाटते हुए विशाल ने अपना मुँह शीला के ब्लाऊज़ में घुसाया जिससे शीला के ब्लाऊज़ का एक हुक टूट गया और शीला का ज्यादा क्लीवेज नंगा हो गया। मम्मों को नीचे से ऊपर दबाते हुए विशाल शीला का सीना चाटते हुए बोला, “वैसे जान माना कि बस में ऐतराज़ करती तो तेरी बे-इज़्ज़ती होती… पर ये सच बता कि क्या तुझे ऐतराज़ करना था जब मैं तेरे जिस्म से खेल रहा था बस में?”
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